है माँ दुर्गे जगदम्बे भवानी तू तो विद्या दायनी है तेरी महिमा अपरंपार तेरे खेल निराले है कभी काली,कभी गौरी बन तो कभी सरस्वती बन कर नित नए रूप में आती होकरे वंदना जो भी तेरी मनोकामना उसकी पूर्ण करती माँ सबके दु:खो को हरने वाली तुम नौ रुपों में आई हो ब्रह्मा,विष्णु,और महेश सब में तेरी शक्ति माँ कैसे करूँ स्वागत तेराखुद भंवरजाल में फंसी हूँ माँ कुछ भी नहीं मेरे पास में माँ क्या तुम्हें भोग लगाऊँ मैं जो रुखा सूखा पास मेरे तुझको वो भेंट चढ़ाऊँ माँ बस इतनी शक्ति मुझको दे दे माँँ हर मुसीबत से लड़ पाऊं मैं जब भटकूं मैं राह कभी भी माँ हाथ मेरा तू आ के थाम लेना माँ ।भावना कुमारी
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
भावनाजी…. आपके भाव बहुत बढ़िया हैं पर वर्तनी दोष सही कर लें…. तेरी खेल निराली है…को तेरे खेल निराले हैं होना चाहिये….कैसे करूँ स्वागत तेरी में तेरा कर लें… एक और देखिये…जो रुखा सूखा दिया हमें…यह भाव सही नहीं है…शिकायत का…. इसको ऐसे कुछ लिखियेगा….जो रूखा सूखा पास मेरे…तुझको वो भेंट चढ़ाऊँ माँ…अंत में….
बस इतनी शक्ति मुझको दे दे माँ
जब भटक जाऊँ राह कभी
मेरा हाथ तू थाम लेना माँ
पूर्ण नहीं है….शक्ति आप मांग रही हैं…किस लिए…इसको ऐसे सोच कर देखिये…
बस इतनी शक्ति मुझको दे दे माँ
हर मुसीबत से लड़ पाऊं मैं…
जब भटकूं मैं राह कभी भी माँ….
हाथ मेरा तू आ के थाम लेना माँ
बहुत बहुत धन्यवाद सर ।आपके दिये गए सुझाव के अनुसार मैंने ठीक कर लिया है ।