मेरी नज़रों से खुद को देख लो तुमको ख़बर होगी ये मेरी ज़िंदगी तेरे जलवों के बिन कैसे बसर होगीतेरी अपनी मुसीबत है ये सच स्वीकार है मुझकोमगर रस्ता कोई तो देख जिससे मुझ पे महर होगीअगर डूबा रहा सूरज तो अंधेरा खुश हो अकड़ेगाउम्मीदें जिंदा रखने को ना फिर कोई सहर होगीमुहब्बत की तड़प दिल में अगर उठने से रुक जाएकिसी सागर में फिर तो ना कभी कोई लहर होगीतू कर इक बार फिर हिम्मत और पहलू में आ मेरेबात अपनी मुहब्बत की मधुकर सारे शहर होगीशिशिर मधुकर
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उम्दा……मधुकर जी…. मकता में मुझे लगता है की फिर और हिम्मत के ऊपर सारा दारोमदार है….फिर को दूसरे मिसरे में ले कर देखें भाव निखरता क्या…. भाव तो यही है न की फिर से पहले वाली महब्बत की चर्चा होगी…. अगर मैं सही समझा आपके भाव तो एक सुझाव…
तू अब की बार कर हिम्मत और पहलू में आ मेरे
महब्बत अपनी मधुकर फिर नुमाया सारे शहर होगी
Dhanyavaad Babbu Ji. Aapka sujhaav bhi bahut uttam hai. Mai ise istemaal karne kaa apse adhikaar lie letaa hun.