सुबह उठते ही जो मुझको तुम्हारी दीद मिल जाएमेरे मन के भीतर की हर कली फिर तो खिल जाएतू अपने मरमरी हाथों से मेरी जुल्फों को सहला देफिर तो हर घाव सीने का मेरा चुटकी में सिल जाए मुहब्बत में वो ताकत है ख़बर जिसकी नहीं तुमको अगर ये चाह ले थोड़ा भी तो परबत भी हिल जाएमेरा गर बस चले तो मैं तुम्हें पलकों में रख लूँगा कहीं धरती के कांटों से बदन तेरा ना छिल जाएखुद को मुझसे छुपाने की अदा अब छोड़ दो न तुम कहीं मधुकर का ये दिल टूट के बन ना कुटिल जाए शिशिर मधुकर
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सही कहा आपने मुहब्बत की ताकत सबसे दमदार होती है ……….!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ………………………
बेहद खूबसूरत….आप भी चेक कीजियेगा…’दीद’ मुझे लगता दूसरे की नज़र से खुद को देखने का अंदाज़ है….मतलब की महबूब की नज़र हमें देखे…. बड़े बड़े शाइर को मैंने इसे इसी रूप में प्रयोग करते देखा है…. दर्शन हम उसके करें शायद उस से लिंक नहीं है…. पक्का नहीं है…मैं इस लिए शेयर कर रहा ताकि आप की जानकारी में आये तो मुझे बताईएगा….एक शेयर है इक़बाल का जो इस समय याद आ रहा है…माना की तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं….तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख”
मधुकरजी…मैं गलती से कमेंट कहीं और दे गया….वहां से डिलीट कर दीजियेगा आप….
Tahe dil se shukriya Babbu ji. Aisa nahin hai, aap ko yaad hoga ek bahut puraana gaanaa hai “mujhe mil gaya bahanaa teree deed kaa, kaisi khushi leke aayaa chaand eid ka” yahan par deed usi tarah se prayog hua hai jaisa maine kiya hai.