रातों दिन कुछ जीवन के मेरे , तुमसे मिलकर रंगीन हुए
दुनिया के झगड़ों को छोड़ , प्यार में जो हम लीन हुए
उन लम्हों को मैं याद किये , रातों में अब न सोता हूँ
मैं पल पल करके याद तुझे , रातों में ऐसे रोता हूँ
………..
खुद से बाहर आकर के हम , खुशहाली के पल चुन पाए
पहले ये प्रेम रोग लिया , तब जाकर धड़कन सुन पाए
हर रात हमारी सूनी सोती , तुमसे मिलकर कुछ रंग मिले
एक नया सवेरा दिया तुम्ही ने , जीने के तुमसे ढंग मिले
पर अब जीवन में प्यार नहीं , आशायें सारी खोता हूँ
मैं पल पल करके याद तुझे , रातों में ऐसे रोता हूँ
………..क्या अजब वक्त वो जीवन का , मनबाग मे हर्ष की कलियाँ थी
दिन भर चलने पर भी न थकते , तुम्हारी ऐसी वो गालियाँ थी
देखने को बस एक छवि तुम्हारी , अम्रत पाने को मन तरसे
हो जाये जिस पल में दीदार , भर भर अम्रत उस पल बरसे
अब तो कमरे की दीवारों संग , नैना अपने भिगोता हूँ
मैं पल पल करके याद तुझे , रातों में ऐसे रोता हूँ
………..
बदल गया कितना कुछ अब , उन रातों जैसा जश्न कहाँ
तुम लौट के आओगी या न , मन मे अब भी ये प्रश्न रहा
पर दिल मेरा मासूम बड़ा , जबरन आशायें लाता है
तुमसे मिलना मुश्किल फिर भी , ये गीत तुम्हारे गाता है
करुणा की वर्षा हो या न , मैं बीज प्यार के बोता हूँ
मैं पल पल करके याद तुझे , रातों में ऐसे रोता हूँ
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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