झूठ ने इतना पैर पसार लिया,विश्वास हिचकोले खाता अब।संदेह ने नज़रों में घर जो किया,भरोसा भी तो डगमगाता अब।दिल की कैसे कोई सुने जब,दिमाग ही हावी हो जाता अब।फ़रेब से भरी इस दुनिया में,इंसा कहाँ रिश्ते निभाता अब।कैसे कोई समझौता हो यहाँ,अहम ही जब टकराता अब। अनु महेश्वरी
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Ekdam sahi or satyaparak…………..
Thank you, Shishir ji…
बहुत सुन्दर…..अनुजी…झुठ को झूठ…. रिस्ते को रिश्ते कर लें….
संदेह ने नज़रों में घर जो किया,
भरोसा भी तो डगमगाता अब।
इन पंक्तियों को ऐसे सोच कर देखिये कैसे लगती हैं….
संदेह ने नज़रों में घर इतना किया,
भरोसा भी डगमगाने लगा है अब।
भरोसा कहाँ तक कोई रखेगा अब
Thank you, Sharma ji…
अच्छे भाव के साथ सुंदर रचना।
शर्माजी के कहे नुसार सुधार जरुरी…..
Thank you, Shashikant ji…
बहुत सुंदर अनु जी
Thank you, Bideshwar ji…
Bahut khoob
Thank you, Arun ji…