अधूरी पड़ी है ज़िंदगी ना चैन आता हैकोई कहीं ख्वाबों में मुझको बुलाता हैसाथ जन्मों का तो हरदम टीस देता हैतुम भुलाओ ये मगर फिर भी सताता है ज़िन्दगानी में तो अक्सर लोग मिलते हैं हर कोई दिल में मगर थोड़े ही समाता है कांटों के संग में कभी रहना भी पड़ता है चाह के कोई घर में इन्हें थोड़े ही उगाता हैजालिम हुई है ज़िंदगी अब क्या करे कोईमधुकर यहाँ हर पल कोई इंसा ठगाता है शिशिर मधुकर
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खूबसूरत अच्छी अनुभूति
Dhanyavaad Bindu Ji ………………
Bahut khoob
Dhanyavaad …………..
उम्दा…..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ……………..