मुहब्बत शिद्दत की निगाह हैदर्द में भी चाहत बेपनाह हैखुदा की इबादत जैसे मुहब्बतदुनियां के लिये ये गुनाह हैमुश्किलें है हजारों माना मगरमुहब्बत में ना इंतकाम हैलिखी किस्मतों में खुशियाँ अगरकिसे फिक्र क्या अंजाम हैचाहों अगर मुहब्बत की दुनियाँनर्क से भी बुरे लम्हात हैजरुरी नही हो ख्वाहिशें पूरीवक्त में बदलते हालात हैमुहब्बत में हो केवल शराफतमुहब्बत में ना अत्याचार हैपाने की चाहत ही है मुहब्बतजिद में मगर झूठा प्यार है——————-//**–शशिकांत शांडिले, नागपुरभ्र.९९७५९९५४५०
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Achcha likha hai Shashikant…………..
बहुत बहुत आभार आपका !
बहुत बढ़िया …शशिकांत
बहुत बहुत आभार आपका …….
bahut khoobsoorat…………
बहुत बहुत आभार आपका !