लिख नहीं पाता हूँ
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लिखना चाहता हूँपर लिख नहीं पाता हूँआँखों के सामने तैरतेकुछ ख्वाब,कुछ अनकहे अल्फ़ाज़आते है क्षण भर के लिएफिर गुम जाते हैसहेज कर किसी तरहउनको रखना चाहता हूँलिखना चाहता हूँपर लिख नहीं पाता हूँ !!!कभी कभारयूँ बैठे बैठे हीया फिर चलते चलतेजगने लगते है हैकुछ मनोभावस्पंदन करते हुएधुंधला जाते हैजब तक बांधता हूँकलम के तार मेंकही दूर निकल जाते हैऔर फिर ..वही…….!ठगा सा रह जाता हूँ !!लिखना चाहता हूँपर लिख नहीं पाता हूँ !!
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कितना सरललगता है सबकोकुछ लिख पानाकवित्त भावह्रदय जगा पानाहै उतना ही कठिनमगर कार्य यहबड़ा ही असाधारणकोशिश करके भीहार जाता हूँबारम्बार ..नहीं कर पाता हूँलिखना चाहता हूँपर लिख नहीं पाता हूँ !!
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स्वरचित :- डी के निवातिया
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बहुत ही सुन्दर सर
हृदयतल से आभार एवं शुक्रिया आपका ………….BHAWANA Ji.
बहुत सुंदर मनोभाव.. बहुत अच्छी है.. लिखना हम भी चाहते.. वस शब्द फिसल जाते हैं।
हृदयतल से आभार एवं शुक्रिया आपका ………….BINDU JI.
Behad sundar ………
हृदयतल से आभार एवं शुक्रिया आपका ………….SHISHIR JI.
व्यथा ..सच है , हम सभी जो महसूस करते हैं..वह सभी लिख पाना .. कभी किसी के लिए संभव नहीं होता|
हृदयतल से आभार एवं शुक्रिया आपका ………….ARUN JI.
कमाल है…अभी न लिख पाने में ही इतनी बढ़िया रचना रच दी….मैं सोचता हूँ की लिखना आता है पर मन नहीं करता लिखने को मेरा….हाहाहाहा….. सब के मन की बात कह डाली…बेहद खूबसूरत….
हृदयतल से आभार एवं शुक्रिया आपका ………….BABBU JI.