कौन ढलना चाहे**********है भला कौन मुसाफिर राह में जो संग चलना चाहेहर कोई चाहे नया रंग , मेरे रंग कौन ढलना चाहे !!हर किसी को है पसंद, अपनी राह नई कायम करेकदमो के निशाँ फिर पगडंडी में कौन बदलना चाहे !!बात जो हकीकत हो एक बार चालाकी से घुमा दो ,फिर कौन झूठ-सच का पता लगाने उलझना चाहे !!बाज़ीगरी का हुनर होता है क्या कोई उनसे सीखे,रस्सी का सांप बना सुलझे कैसे क्यों सुलझना चाहे !!जब अपने हाथ सेंकने में मग्न हो हर एक शख्सऐसे में कौन भला दूसरे की आग में जलना चाहे !!जिसे आदत लगी हो शाही मखमली बिस्तर कीवो भला फूंस की झोपड़ पट्टी में क्यों पलना चाहे !!विष भी निर्मल जल सा बहने लगे जब “धर्म” भरे बाज़ार में ,बेवजह शेयर की तरह, फिर कौन गिरना उछलना चाहे !!!डी के निवातिया===
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Buhut koob sir lane likha hai
तहदिल शुक्रिया आपका …ANJALI.
Very beautiful lines
तहदिल शुक्रिया आपका …………RINKI.
ACHHHI PAHAL SUNDER LIKHA AAPNE.
तहदिल शुक्रिया आपका …………..BINDU Ji.
Ati sundra Nivatiya Ji…….
तहदिल शुक्रिया आपका ……………SHISHIR JI.
लाजवाब….स्वार्थ परायणता को बाखूबी कलम में उतारा है…. मक्ते की अंतिम पंक्ति पहले मिसरे के हिसाब से नहीं जंची…. सम्बन्ध नहीं समझ पाया मैं दोनों का….क्षमा प्रार्थी हूँ….
तहदिल शुक्रिया आपका …………..BABBU Ji.
जब सत्य का औचित्य ही समाप्त हो जाए तो फिर किसी भी शै: के प्रभावी होने के लिए व्यर्थ लगने लगता है 1