जो मन आपस में मिल जाएँ जुदा वो हो नहीं पातेजो मिल के भी नहीं मिलते वो तन्हा सो नहीं पाते अनोखा सा जो रिश्ता है दर्द ए दिल का समुन्दर है लिपट एक दूजे के सीने से वो अक्सर रो नहीं पातेगरजता भी है वो बादल बरसता भी है वो हर पल मगर जो छुप गए भीतर वो उनको भिगो नहीं पातेजिम्मेदारी का ये बोझा जब से हमने सम्भाला हैमधुर सपने कोई अपने लिए अब संजो नहीं पातेछाप असली मुहब्बत की कभी मिटती नहीं जग में लाख कोशिश करी मधुकर इसे हम धो नहीं पाते शिशिर मधुकर
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बहुत सुन्दर रचना
आभार रिँकी
सदैव की तरह बहुत खूबसूरत
शुक्रिया निवतिया जी
bahut khoobsoorat……………
Tahe dil se shukriya Babbu ji