भारत माता फ़िक्रमंद है।क्यों आज भारत बंद है।सुनसान पड़े हैं बाज़ारजीविका की चाल मंद है।रेहड़ियां सभी जली हुईडरे से फल और कंद हैं ।देशभक्ति ओड़े चल रहेअहं के गूंजते छंद हैं ।सुधारने चले राष्ट्र कोसड़कों पर मचाया गंद है।बेबस-लाचार तड़प रहेमौत पर भी मुँहबंद है।गरीबी भूख से तड़पतीछुट्टी पर दौलतमंद है।सत्ता-लोलुप तुम सच यहीराज वास्ते द्वन्द्व है।अरे! कुपूतो रुक जाओभगत की यही सौगंध है।।।मुक्ता शर्मा ।।
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Satya parak sundar rachnaa Mukta. Par virodh bhi aawashyak hai. Haan mudda uthaane me imaandaari honi chahiye jo kahin nahin dikhti.
आपके शाबाशी भर शब्दों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
बेहतरीन रचना ……👌
Bahut sunder rachna, Mukta ji…
आपकी चिंता हर किसी की चिंता है पर सरफिरों को समझ तभी आती जब डंडा चले…..मुझे तो हर बंध से नफरत है….
achhi abhivyakti llllllllllll
बहुत ही सुन्दर