डर तुम्हारे फिर से चलो अब सभी दूर हो गएनज़दीक आने को तुम भी लो मज़बूर हो गएमुझे पहचानते हो बस यही तुमने बताया थाएक बार फिर एक दूजे का हम गुरूर हो गएगुमनामी सी छा गई थी तेरा साथ जब छुटाआ गए हो तुम लो फिर हम मशहूर हो गए घाव जो मिले थे सनम मुहब्बत में मुझे तेरी उनमें से से कई तो तू देख ले नासूर हो गए हीर हो तुम मधुकर जिसे खुद की नहीं परख कितने तुम्हें अपना समझ यहाँ मगरूर हो गए शिशिर मधुकर
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वाह्ह…..मकता तो कमाल का है….लाजवाब….
आपकी “एक खुमार में” कमैंट्स नहीं जा रहे थे…यहां लिख रहा हूँ…
वाह्ह्ह….उम्दा कलाकारी….जवाब नहीं आपका…. अंत में “एक” की जगह “उसी” तो नहीं सही लगता कहीं… हो सकता मेरी सोच अलग आपकी अलग…
Tahe dil se shukriya Babbu ji ………………
sahi kaha ……sunder bhav lazwab…..
Dhanyavaad Bindu Ji ……..