।।मेरा मन वृंदावन ।।मोहन मुरली तुम्हारी प्यारी।सुध बिसराई मोरी सारी।कान्हा-कान्हा जपूं निसदिन।कृष्णा मेरा मन वृंदावन ।।देखो गैयां खूब संवारी।गूंजी कहीं बांसुरी न्यारी।कान्हा-कान्हा जपूं निसदिन।कृष्णा मेरा मन वृंदावन ।।दूध-दहीं की बह रही धारी।मखनी-मिश्री तो देखो प्यारी ।कान्हा-कान्हा जपूं निसदिन ।कृष्णा मेरा मन वृंदावन ।।बांवरी तेरी मैं बनवारी।भर दो अब तो दरस क्यारी।कान्हा-कान्हा जपूं निसदिन ।कृष्णा मेरा मन वृंदावन ।।पहन के निकली सुंदर सारी।निधि वन जाने की तैयारी ।कान्हा-कान्हा जपूं निसदिन ।कृष्णा मेरा मन वृंदावन ।।पलक झपकूं ना डर की मारी।छोड़ न देना मुझे गिरधारी।कान्हा-कान्हा जपूं निसदिन ।कृष्णा मेरा मन वृंदावन ।।।।मुक्ता शर्मा ।।
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बहुत सुंदर रचना ….मुक्ता जी
धन्यवाद
Behad sundar rachna……
धन्यवाद मधुकर जी
बहुत ही सुन्दर मक्ता जी
धन्यवाद भावना बहन
मनमोहक…..मनभावन……
धन्यवाद सर
achhi manmohak rachna bhakti mein dubi hui.
बहुत-बहुत धन्यवाद शर्मा जी
सच्ची आपके शब्दों से मन को तसल्ली हुई और खुशी भी गुणीजन को मेरी रचना पसंद आई।