सच्ची मुहब्बत गर तूने मुझ से करी होतीचुप्पी ये अपने होंठों पर न तूने धरी होतीसर पे कफ़न सजा के जो हुंकार ले लेतीतलवार ये समर में फिर तो ना डरी होतीबादल बरसने की जगह गर ताकते रहतेसूखी हुईं धरती ये फिर तो ना हरी होतीकिस्मत अगर सच में ही मेरा साथ दे देतीझोली मेरी तेरे प्रेम से अब तक भरी होतीमन में अगर उसके भी कोई चोर ना होता हर बात मधुकर फिर यहाँ उसकी खरी होतीशिशिर मधुकर
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बहुत खूबसूरत रचना हैं ….
बधाई !
Take dill seed shukriya Shashi Kant.
बहुत बढ़िया….. “बादल बरसने की जगह गर ताकते रहते…सूखी हुईं धरती ये फिर तो ना हरी होती” उम्दा भाव……..
Tahe dil se shukriya Babbu ji ………………..