जब गुजरती हैं गलियों से सोचो किससे डर जाती हैं आजकल लड़कियाँ क्यों मर्दों से घबराती हैंजो छोड़ कर सबकुछ अपना बस तेरी हो जाती है तेरे भरोसे कंधे पर सिर रखकर सो जाती हैहम बने सहारा इनका गलियों चाक चौराहों पर कद्र करे साथ निभायेजिंदगी के चौराहों परआज हम टीका बनकरइनका मस्तिक सजा दे इन तितलियों को ऊँचे अश्मानो में उड़ना सीखा देंदामन बनकर इनका अस्मत इनकी बचा लें कांटा बनकर फूलों को आसपास अपने खिला लेंइनके बिना हम देखो कितने अकेले हो जाते हैं फिर क्यों मौका मिलते ही इनको नौच खाते हैं
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बहुत ही सुंदर कविता है।
राकेश कुमार जी आपसे अनुरोध है …
क्या मैं आपकी ये कविता फेसबुक पे पोस्ट कर सकता हूँ?
BAHUT KHOOB ….
Thanks sir
Sunder rachna,…
Beautiful thoughts …….
ati sundar……..ashmaanon ko aasmaanon kar lein…..
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ
धन्यवाद आपका