हां ये वही खेत है वही आम का पेड़ हैजिसकी टहनियों की बाहें थामेमुस्कुराती हुई सी तुमबेहद चंचलता से टहनियों के बीच सेझांकतीमुझे आवाज देतीउस एक पल को कैद करने कीजिद करतीहां कैद है वोपल मेरी आंखों मेंठीक वैसे हीजैसे तुम चाहती थीऔर कैद हो गई होतुम भी बिल्कुल उस पल की तरहमेरी आँखों मेमेरे हृदय मेंजब चाहूं जहां चाहूंतुम्हे देख सकता हूँतुमसे बातें कर सकता हूँऔर तुम मिलोगी वहीं पर मुझे हर बार,बार बारवैसे ही मुस्कुराती हुईआम की टहनियों कीबाहें थामे ।(सीमा वर्मा”अपराजिता”की स्मृति में।)-देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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Behad sundar or bhavuk. Seema apni kavitaaon ke maadhyam se hamesha hamaare Dilon me zinda rahengi.
बहुत सुंदर लाजवाब
यादें तो हमेशा के लिए दिल के और अवचेतन मन पर अंकित हो जाती हैं…. या पल कभी सुकून देते हैं तो कभी टीस….. बेहद मार्मिक रूप से भावनाओं को पिरोया है….
बहुत सुन्दर रचना