ये जिंदगी संवरने का, नाम नहीं लेतीउसे सोचने के अलावा, काम नहीं लेती…..देता हूँ हर कीमत , तुम्हे भूल जाने कीमगर मुँह मांगा भी , ये कुछ दाम नहीं लेती…..जानती है कि दर्द है , तुम्हारी यादों मेंभूलेगी तुमको इसलिये, जाम नहीं लेती…..हरदम सोचती तुझे , थककर चूर हो जायेफिर भी थोड़ा रुक कर , आराम नहीं लेती…..पहला ऐसा काम है , जो मुकम्मल हुआ हैइतनी जिद्दी है कि, ये ईनाम नहीं लेती…..जब तड़पन, उदासी, आँसू से भर चुकी हैफिर इन धड़कनों को तू , क्यों थाम नहीं लेती
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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very nice
धन्यवाद निवातिया जी….
Good work……..
धन्यवाद मधुकर जी