सनम कुछ ही बरस बाकी हैं अब ये रूप ढलने मेंमिलन कर लो बिता दो ज़िन्दगी या हाथ मलने मेंएक क़दम आज तुम भर के सुकू दिल में बैठा लोकभी ना चैन आएगा तुम को घुट घुट के जलने मेंएक तरफ़ राह कांटों की एक तरफ़ फूल बिखरे हैंछिलें ना अब चरण तेरे किसी भी रस्ते पे चलने मेंना परखो ज़िन्दगी को हर समय अपनी कसौटी पेवरना रह जाओगे तुम तो यहाँ केवल सम्भलने में आज भी ढल गया सूरज राह तकते हुए दिन भरतूने तो रात कर डाली है मधुकर घर से निकलने में शिशिर मधुकर
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har ek rachna me ek nayapan hai aur arthpurn bhi, bahut khub Shishir sahab
Tahe dil se shukriya Rajiv Ji ………
लाजवाब…..मकता कमाल का भाव लिए है….वाह….
Tahe dil se shukriya babbu Ji …………….