कलयुग का यह विनाशकारी रूप ,हमारा भाग्य हमें दिखा रहा .विकास का चेहरा दिखाते हुए ,इसका कदम तो पतन की ओर बढ़ रहा .ज्ञानियों से सूना था इसका बखान ,कल (मशीन) होगी इसकी पहचान .मगर ‘कल’ के अधिक प्रयोग से ,मशीन (कल) ही बन गया हर इंसान .’कल ‘ नहीं हम तो इसे कहेंगे ,कलह का भद्दा ,भयावह युग.अनेक प्रकार के जघन्य अपराधों,व्यभिचार , हिंसा का रोद्र युग .मानवीय मूल्य , सभ्यता,संस्कृति ,संस्कार सब तो लुप्त हो गए .धर्म ने अधर्म का रूप ले लिया ,साधू-संत चरित्रहीन औ व्यवसनी हो गए.शर्म-लिहाज़ ,मानवता ,प्रेम ,दया -करुणा ,तो आज के मानव में बची ही नहीं है .नारी और प्रकृति का सम्मान /सुरक्षाजैसी भावना लेशमात्र भी इसमें बची नहीं है.पाप की पराकाष्ठा इतनी हो गयी ,की अब धरा भी पापियों के बोझ से झुकने लगी है.अति-शीघ्र लो प्रभु अब कल्कि अवतार !,कलयुग के अत्यधिक संत्रास से वोह थकने लगी है.
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saty vachan
sahi kaha aapne……….
Uchit peeda ……..
सभी आदरणीय महानुभावों का बहुत बहुत धन्यवाद