जो मेरा बस चले कभी तुम्हें ना दूर जाने दूँकहीं गैरों के साथ तुमको ना हुज़ूर जाने दूँतुमको ख़ुशी देने से सुकून मिलता है मुझको नशीली अँखियों से तेरी कभी ना नूर जाने दूँतुझे हर पर रिझाने का जो मौक़ा मिले मुझको कभी दक्षिण ना तेरे चेहरे का सुरूर जाने दूँ तेरी सब बलाएं मुझे यहाँ हंस कर कबूल हैं तेरे माथे पे अब ना कोई भी कसूर जाने दूँ तुम साथ रहते हो तो हर मौसम है मिलन का मधुकर नज़र से दूर ना ये मस्त मयूर जाने दूँशिशिर मधुकर
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सुन्दर भाव शिशिर जी
Haardik aabhaar Akhilesh Ji ……
Bahut sunder, Shishir ji..
Dhanyavaad Anu ……..
बहुत खूब…..हट के…..”तेरे माथे पे अब ना कोई भी कसूर जाने दूँ” मुझे लगता यह ऐसे होना चाहिये…तेरे माथे लग ना कोई कसूर जाने दूँ….
Aapke sujhaav ke lie bhaut bhaut shukriya Babbu Ji …..
बहुत सुन्दर रचना सर।
Tahe dil se shukriya Anjali…..