गीत गर्दन चढाने वालों केआज गुनगुना रहा हूँएक दीया मैं भी उनकीयाद में जला रहा हूँ |जगा रहा हूँ किआहूतिदी जिन्होंने प्राण कीआज उनकी आरजूओं कीआग तुमको दिखा रहा हूँ |एक दीया मैं भी उनकीयाद में जला रहा हूँ |बांधकर जो बाजुओं परभरोसा चढ़ गये हिमालयआज उन दीवानों की मोहब्बत तुमसे मैं जता रहा हूँ |एक दीया मैं भी उनकीयाद में जला रहा हूँ |वो थे कि जिनकी गोद मेंसिर्फ थी माटी की ममताउनके बिखरे खून कोमैं सतरंगी बना रहा हूँ |एक दीया मैं भी उनकीयाद में जला रहा हूँ |छोड़ गये जो ये धरा उज्ज्वलये गगन और उजला सवेरामाटी से उठाकर उनकोमस्तक गले लगा रहा हूँ |एक दीया मैं भी उनकीयाद में जला रहा हूँ |
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सुन्दर रचना।
aabhar aapka anjali g
behad khoobsoorat…..
Sundar shradhanjali Rakesh Ji…….
आभार आप सभी का मान्यवर
ati sundr
जी धन्यवाद