आज निकले यूं पुरानी राहों की ओर,वही हरियाली थी चारों ओर,न वो हवा बदली,न वो घटा बदली,वही था सकूल के बच्चो का शोर।। बदले थे तो सिर्फ सवाल स्कूल के, पूछा हमसे कैसे है इम्तहान जिंदगी के, यहाँ डरते थे छोटी छोटी परीक्षाओं से, क्यो आज हर कदम पर है ढेर इम्तहानों के ।।यहाँ सुलझे सुलझे से रहते थे,दोस्तों के बीच मस्त थे,न वक्त की फिक्र थी,और उलझनों से बेफिक्र थे ।। अब वक्त से लड़ते रहते हो, मतलब जिंदगी के तलाशते हो, रिश्ते उलझनों से रखते हो, और खुद को खुद में तलाशते हो।।यहाँ थे, हँसी थी ,खिलखिलाती सी जिंदगी थी ,क्यों अब मायूस से रहते हो,मुसकुराने से भी डरते हो।। बिना जबाब दिये कदम बढ़े जा रहे थे , और हम स्कूल को ओझल नजरों से देखें जा रहे थे ।। बस देखें जा रहे थे …………. अंजली
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हाहाहा….बेहद खूबसूरत…..अपने स्कूल बचपन की यादें ताज़ा कर दी….सही कहा है….वो मस्ती…वो बचपना डूब गया बोझ के तले…. सच में…. बेदर्द सा मौसम हो गया है….
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Bahut khoob. Pravaah bhaut khoobsoorat hin Anjali.
आपका बहुत बहुत आभार सर।
Bahut sunder Rachna….
Thanks mam
आपका बहुत बहुत आभार सर।
अत्यंत खूबसूरत …………!
टंकण त्रुटि सुधार की आवश्यकता है
सकूल को “स्कूल” और मुसकुराने को “मुस्कुराने” कर ले !!
Thanku sir