गीला गीला मौसम मन बेकल करता हैतेरा ये दीवाना तुझ पे हर पल मरता हैपेड़ों पे बादल की ज्यों बौछारें पड़ती हैंप्रेम की वर्षा का पानी मुझ पे गिरता हैभूलना चाहा जिसकी बाहों के बंधन कोउसके ही सपनों में मनवा आके घिरता हैतू नज़रों से प्यार करे तो ऐसा लगता हैजैसे अपना जलन कोई चंदन से हरता हैतेरी प्रीत में असर बड़ा है मुझको एहसा हैरंग मेरे चेहरे का जिससे खूब संवरता है वक्त ने हमको दूर किया है चैन ना आएगा घाव हिज़्र का तो केवल मिलने से भरता है हाथ में लेकर हाथ ना छोडूं सोच लिया मैंनेतेरी बदनामियों से पर मधुकर भी डरता हैशिशिर मधुकर
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Bahut Sundar…
Shukriya Anu ………….
Sir आपकी रचनाएँ पढ़कर मै उसी में खो जाती हूँ।बहुत ही सुंदर।
Aapke anmol shabdon ke lie dil ki gahraaiyon se shukriyaa Dr. Swati …….
मधुकरजी….पहले चार शेर बेहतरीन बने हैं…. मात्राएं भी २४ और २६ आ रही जो मैंने गिनी…लय ताल के हिसाब से मजा आ गया पर ५वें शेर में वो मजा बहुत ही कम हो गया…बनिस्बत ऊपर के शेर से…
चौथे शेर में अहसास कर लीजिये….और दूसरा मिसरे में शब्द चयन काफिये का साहित्यक नहीं लगता न ग़ज़ल का लफ्ज़ है….५वें में व्याकरण के हिसाब जैसे को तैसा या वैसा ही मिलता है….ये मयिथोलॉजिकल लफ्ज़ है…. वैसे भी “वो” का मतलब एक स्पेसिफिक इंसान के लिए हो गया….अंतिम पंक्ति में मुझे लगता आप “तेरी बदनामी” लिखना था शायद …
Babbu ji, Aapkaa kathan sarvtha uchit hai. Maine rachnaa me aawashyak sudhaar kiyaa hai. Kripyaa punraavlokan kar pratikriya dene ki krapaa karen.
वाह…..लाजवाब…..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ……………..
बहुत सुन्दर
Haardik aabhaar