जब मिलन की इजाजत नहीं है,प्यार में फिर सदाकत नहीं है।शर्त कोई कभी हो न इसमें,इश्क कोई तिजारत नही है।आज तुम भूल बैठे हमें क्यों,अब तुम्हें क्या मुहब्बत नही है।तुम उदासीन हो क्यों बतादो,तुमसे कोई अदावत नही है।तुम नहीं हो अगर मेरे मुक़द्दर,फिर हमें भी शिकायत नही है। अनु महेश्वरी
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Behtreen rachnaa Anu ……. Aapne Bahut khoobsoorat shilp kiya hai. Well done.
Thank you, Shishir ji…
अनुजी….बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने….पर ग़ज़ल के भाव आपस में पूरक हों मिसरे तो ग़ज़ल बनती है…. जैसे आपने लिखा है….
जब मिलन की इजाजत नहीं है,
प्यार में फिर सदाकत नहीं है।
मिलने की इज़ाज़त नहीं हो तो क्या प्यार कम हो जाता या ख़त्म नहीं होता…. प्यार तो प्यार है….अगर सच्चा है तो मिलना हो या न हो…वो प्यार ही रहता है…. यहां आप का मतलब निकल रहा कि अगर मिलने की इज़ाज़त नहीं है तो प्यार सच्चा नहीं है….जब कि आप ये कहना नहीं चाहती फिर भी मतलब यही निकल रहा….
तुम उदासीन हो क्यों बतादो,
तुमसे कोई अदावत नही है।
आप पहले मिसरे में पूछ रही हैं….उदासीनता का कारण….पर जवाब आप दे रही हैं कि आप को अदावत नहीं है….जवाब तो जो उदासीन है वो देगा या ऐसे हो सकता दूसरा मिसरा जो कम्पलीट करे जैसे “हमसे तो कोई अदावत नहीं है ?”
Thank you Sharma ji, aapke sujhao pe jarur dhyan dungi…
खुबसूरत रचना
Thank you Bhawana ji…