नज़रें भी तुझसे ना मिलीं पर बात हो गई तुम बेखबर थे फिर भी मुलाक़ात हो गई दिन में तुम्हें तलाशा तो तुम शाम को दिखेज़ुल्फ़ें तेरी निहारते ही बस रात हो गई सोचा था तेरा रूप रस हाथों में भर पियूँ बादल मगर मचल गया लो बरसात हो गई कितना गुरूर था मुझे अपने ईमान पर तेरी झलक मेरे लिए पर खैरात हो गईशतरंज का सा खेल है तेरा मेरा मिलन चुके ज़रा रकीब से लो फिर मात हो गई लो हट गईं रुकावटें बिना बात जो बनीं उल्फ़त की फिर एक नई शुरुआत हो गई मय्यत मेरी को देख के तुम भी जो रो दिए मधुकर सफर जनाज़े का भी बरात हो गई शिशिर मधुकर
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Beautiful ,,,Shishir JI
Thanks a lot Kiran Ji …….
Very nice,Shishir ji…
Tshe dil se shukriya Anu ……
बेह्तरीननननन….मजा आ गया…..क्या शब्दों को लय दी है…..आपने मात्रा गिनी की नहीं पता नहीं ….कुछ एक में मैंने गिनी तो २३-२६ के बीच हैं…..जब एक जैसे ही मात्राएं नोर्मल्ली होती हैं तो लय अलग हो जाती है….मधुर सी….मधुकर जैसे….हाहाहाहा…..
Harady ki gahraaiyon se aapkaa aabhaar Babbu ji ………
wah bahut achhey bhav aapne ukere hain. sunder.
Dhanyavaad Bindu Ji ……………..
बहुत खूबसूरत शिशिर जी हमेशा की तरह !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……………………
बहुत बेहतरीन रचना है सर जी
Aapke anmol shabdon ke lie hraday se aabhaar ……