बहुत रंग देखे हैं दुनिया में हमनेंगिरगिट के जैसे इंसा हो गया है।कभी रंग गोरा कभी ये गेरुआ हैकलियुग में कैसे केचुआ हो गया है।फर्ज और शिद्दत की बात कौन करतालपेटे में युग का जुआ हो गया है।भरोसा कहाँ है अब दुनिया में सब कोआदमी आज बे आसरा हो गया है।सम्मान किसी का न संस्कार रहा अबसत्य कर्मो से अपने जुदा हो रहा है।रिश्तों के बीच बढ़ रही दूरियाँ अबमोबाइल का जब से नशा हो गया है।न प्रेम है उतना न मरौअत किसी परस्वार्थ के वश में सिरफिरा हो गया है।नफरत ये रंजिश और ये गुस्ताखियाँऐसे में कैसे किरकिरा हो गया है।
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सत्य कथन….दुनिया से सब को की जगह….दुनियां में सब को कर लीजिये..सत्य कर्मो की पंक्ति में रह की रहा कर लीजिये….
BAHUT BAHUT SUKRIYA
बदलने का नाम ही दुनिया है ,जो कल थी वो आज नहीं और जो आज है वो कल नहीं रहेगी ,,,,,,ठीक कहा आपने
BAHUT BAHUT SUKRIYA
बहुत बढ़िया बिंदु जी …………….कई शेर और बेहतर कर सकते थे ………..!
लगे रहो लग्न से दुनिया को समझने समझाने में
जिंदगी का एक जल्द ही मज़ा है कुछ खोने पाने में !
VERY VERY THANKS
बहुत खूब ……..
बहुत खूबसूरत अंदाज में सत्य कथन
very very thanks madhu jee.
Bahut sundar…
BAHUT BAHUT SUKRITYA
Thanks sashikant jee.
बहुत खूबसूरत पँक्तियो के साथ सत्य कहा है आपने
Bahut bahut sukriya aapka
क्या कहने उम्दा पेशकश
Bahut bahut dhanyavad dost