शायद पसीने की बूँद उसकी अब गर्मी पैदा करती नहीं और तिस्कारित जीवन से मुक्ति उसे मिलती नहीं दीन-हीन हो गया जीवन देने वाला अब देखो पैर से बड़ा हो गया उसके दिल का छाला अब चाहता है कड़वी बातों में कोई मीठा खिला दे उसे उसके ही आशियाने में दो साँस दिला दे उसे ये अंतर्द्वंध का कोढ़ देने वाला उसका बच्चा है पोषण देने से इंसान को पशु पालना अच्छा है उठती है टीस अब जख्मी हुऐ हालातों से उसके घरौंदे की रेत जब फिसलने लगी है हाथों से
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बेहद बेहतरीन ……
बहुत आभार आपका
वाह्ह्ह्हह्ह….कमाल कर दी आपने अपनी लेखनी में…..क्या हालात को पिरोया है….दर्द को शब्द दिए हैं…..वाह्ह्ह…..निशब्द हूँ भावों के आगे जय हो……
aapki pyaar bhari pratikriya ke liye bahut Bahut aabhar
behatrin sunder driti……..
Aabhar apka
अप्रतिम सृजनशीलता ……….ऐसा चिंतन सधे मन से ही हो सकता है …………बहुत बढ़िया राकेश जी …………..!
Bahut sundar…
बहुत आभार आपका उत्साहपूर्ण कथन के लिए
Anmol hai aapki pratikriya