वो आठ महीने की फूल सी बच्चीउस मासूम की उम्र थी अभी कच्चीक्या कसूर था उसका क्या सिर्फ इतनाकी तुझे मानती थी अपना मामा, फूफा ,भैया या चाचाउस बच्ची पर कैसी मर्दानगी दिखाईतुम्हे जरा भी लज्जा नहीं आयीउसने तो अभी दूध पीना भी नहीं छोड़ा थाकिसी के गोद में खेलने वाली गुडिया थी वोतुमने कैसे किसी का गोद ही उजाड़ दियाखुदा से डर नहीं लगा तुम्हेजब वो तेरे कर्मो का हिसाब करेगातुम्हे क्या मिलेगाअरे नीच हवसी !बता तू कैसे खुद को इंसान कहेगाअरे नामर्द !तुम्हे उसकी चीख भी नहीं सुनाई दियाचल तू ही बतातेरा खुदा कैसे तुम्हे माफ़ करेगातू कैसे खुद को किसी का बाप कहेगा–अभिषेक राजहंस
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Full of pain and a9ony. Well written.