जब चल-चल तुम थक जाओ,तब पास मेरे तुम आ जाना।सब जग से ठोकर पाओ,तब पास मेरे तुम आ जाना॥नहीं कहूँगा तुमसे कि,जब चले गए थे आए क्यों।सोच-सोच के इधर-उधर की,मत घबराना, आ जाना॥सीधी-सीधी बात कहूँगा,तुमसे भी जब फ़िर आओगे।बिना बात ना बात बनाना,मत समझाना, आ जाना॥जब जाते हो तो मन है तुम्हारा,आओगे अपने मन से।तब राह में यूँ ही छोड़ गए,अब मत शरमाना, आ जाना॥थोड़ा तो मन बिगड़ा है,थोड़ा-सा नाराज़ भी हूँ।थोड़ा जो नज़रें फेरूँ,तो मत क़तराना, आ जाना॥बात-बात में बात तुम्हारी।अक़्सर ही कर लेता हूँ।गर मन में कुछ बात रही हो,बात बताना, आ जाना॥गर तुम ने सोचा है ये,कि तुम्हें मनाने आऊँगा।इंतज़ार में नज़रें अपनी,नहीं बिछाना, आ जाना॥रोज़-रोज़ तो ऐसा कुछ,न हो पाएगा मुझसे भी।आते हो तो आ जाओ,अब फ़िर से मुड़ कर ना जाना॥‘भोर’ आशा टूटती है,क्यों भला तुम आओगे।मेरी आशाओं को अब,न आज़माना, आ जाना॥जब चल-चल तुम थक जाओ,तब पास मेरे तुम आ जाना।सब से जो ठोकर पाओ,हो बुरा ज़माना, आ जाना॥©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’मेरी अन्य रचनाओँ हेतु www.bhorabhivyakti.tk पर जाएँ।धन्यवाद!
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बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है….”जब जाते हो तो मन है तुम्हारा” काल दोष आ रहा है पद के हिसाब से…. ऐसे सोच के देखिए…जब गए थे तो अपने मन से…आओ तो भी अपने मन से….
टिप्पणी हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद..!
पंक्ति अपने में एकदम सही है, वो काल दोष कविता में ‘जाने’ की बारंबारता को दिखाने के लिए है। यदि आपको विरोधाभास लग रहा है तो पंक्ति अपने उद्देश्य को पा चुकी है..
आपकी टिप्पणियों का सदा आभारी रहूँगा, बहुत कुछ सिखाती हैं..
भोर जी…आपकी रचना में पहले तीन पद जो पार्टनर से रेलेट करते कहीं भी बार बार आने जानी की प्रकिर्या नहीं बताते….बाद के पद में रचनाकार अपनी बात करता है…कैसे आप बार बार आने की प्रकिर्या इस पंक्ति में कह रहे समझ से परे है… हाँ आप की रचना है आप बहतर जानते हैं….
प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद..!
यह पद अन्य से स्वतंत्र है, बार-बार जाना कविता में नहीं कहा गया है किन्तु समझ के हिसाब से रखा गया है। उम्मीद है आपकी दुविधा में कुछ फ़र्क पड़ा होगा, यदि मैं समझा पाने में असमर्थ रहा हूँ तो माफी चाहूँगा..!