तुम्हें ग़र छोड़ना होता तो फिर मैं पास क्यों आती तुम्हारे संग हसीं लम्हों के नए सपनें क्यों सजाती मेरी मजबूरियां समझो जो मैं तुमसे दूर रहती हूँ तड़पते हो अगर अब तुम सुकून मैं भी नहीं पाती। मुझे एहसास है अब पीर तुम तन्हा ही सहती हो मैं कैसे भी पुकारूं लेकिन सदा खामोश रहती हो भले ही दिल मचलता हो कि मिल के गले रो लूँ मगर अपनी जुबां से बात तुम कोई ना कहती हो। शिशिर मधुकर
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bahut sunder lazabab madhuka jee.
Tahe dil se shukriya Bindu Ji ……………..
अति सुंदर शिशिर जी …….!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……………..
ati sundar…………….
Bahut bahut dhanyavaad Babbu ji ………………
बहुत ही सुंदर रचना।
Tahe dil se shukriya Dr. Swati …………….