क्यूँ वीणा है मौन मेरी…नयनं में भी नीर नहीं…विरह सलिल तृषित नहीं…हृदय में क्यूँ पीड़ नहीं…क्यूँ पंक में पंकज खिले…सरिता सागर में क्यूँ मिले…नाद दनादन गूंजे भीतर…शोर बाहर क्यूँ नहीं मिले….धीरज ध्यान धर्म सब गूंगे…बहरे हुए हैं कर्ण सभी के…वैरी हाथ में ज़हर लिये हैं…प्रेम मधुशाला क्यूँकर भीगे…विरह पुलकित दर्द निहारे…मलिन नीर हुआ गंगा धारे…नाव डूब कर लगी किनारे…रूह उतरी है प्रीतम द्वारे…\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
मिलन की आस
मन की लालसा
उत्तम रचना
तहदिल आभार आपका….Abhishekji….
bahut khub Sharma Sahab
तहदिल आभार आपका….Rajeevji….
Sundar rachnaa hai Babbu Ji ……..
तहदिल आभार आपका….Madhukarji….
behad sunder rachna … ek lalsha … ek jigyasha ….. ek pyar ki jhalak…
तहदिल आभार आपका….Binduji….
यह रचनात्मक कार्य सामान्य नहीं…भाव शारीरिक नहीं अपितु आत्मा के अंदर के है …आत्मीय चिंतन का बोध है …जो अंदर ही अंदर मंथन करता है …….जहां तक मै आपके भावो को समझ पा रहा हूँ यदि गलत नहीं हूँ तो …….अति सुंदर ……..!
जी आप सही कहते हैं….मैंने आपके कमैंट्स यहां पढ़े…जवाब फेसबुक पे लिख दिया…हाहाहा…. तहदिल आभार आपका..Nivatiyaji….
बहुत ही सुंदर रचना।
तहदिल आभार आपका…swatiji…