मेरी नज़रों से खुद को जो तुम देख लो मेरी हालत पे तुमको तरस आएगा एक प्यासे को फिर से जिला दो जो तुम ये मुहब्बत का बदरा बरस जाएगा। चोट सहते हो तुम कुछ ना कहते हो तुम जाने कैसे अकेले से रहते हो तुम कई सालों से तुमने ना एहसां किया क्या बेज़ा ये मौसम सरस जाएगा। मेरी नज़रों से खुद को जो तुम देख लो मेरी हालत पे तुमको तरस आएगा एक प्यासे को फिर से जिला दो जो तुम ये मुहब्बत का बदरा बरस जाएगा। वक्त रुकता नहीं है किसी के लिए आओ मिल जाएं हम फिर ख़ुशी के लिए दूर तुमको अगर मानो सब ने किया कोई कैसे तुम्हारा दरस पाएगा। मेरी नज़रों से खुद को जो तुम देख लो मेरी हालत पे तुमको तरस आएगा एक प्यासे को फिर से जिला दो जो तुम ये मुहब्बत का बदरा बरस जाएगा। शिशिर मधुकर
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अति सुन्दर ,,,,,,,,,,
Dhanyavaad Kiran ji …………………..
bahut khoobsoorat………
Tahe dil se shukriya Babbu Ji …….
wah! kya likha hai aapne “वक्त रुकता नहीं है किसी के लिए
आओ मिल जाएं हम फिर ख़ुशी के लिए
दूर तुमको अगर मानो सब ने किया
कोई कैसे तुम्हारा दरस पाएगा।” bahut khoob Sir.
Tahe dil se shukriya Rajiv Ji ……….