माँ के आँचल में लिपटेदेखा मैंने एक सपनाचारों ओर खुशियां ही खुशियांलगता कभी ऐसा था जग अपनास्वार्थ और ईर्ष्या रहितसच्चाई और प्रेम सहितन कोई रावण न कोई लंका खुशियों का बज रहा डंकान दुर्योधन न दुर्शासन भाई चारा ही सबका अनुशासनन कोई अबला न बलहीन नारी के सर्वस्व अधीनऊँच नीच का भेदभावनही दिख रहा यहाँ पलड़ा भी किसी का नही लग रहा भारीप्रातः काल चहचहाते पंछीभौरें भी करते गुंजन यहाँफूलों से शोभित है वसुधा तितलियां भी करती आकर्षितसूरज की बिखरती किरणेंस्वर्णिम जग को करतीप्रातः काल की संदल वायुस्फूर्ती मन में भरतीदेख धरा की सुंदरताप्रेयषी को पुकार रहाकही चुरा न ले मुझेये मनोहर काया उषा काल से निशा काल तक हर्षित मन रहता हैदेख इस दुनिया की कायामन अब मेरा जलता हैकाश ऐसी ही काया मेरे जग की होतीन कोई बेटी मरतीन रहती रसहीन धरतीचिंता ने जग की सपना मेरा तोड़ दियाआँखे खोलते ही देखा मैला पड़ा आँचल माँ कायुद्ध का आगाज हुआमाँ का ह्रदय कौंध उठा दो बेटों को लड़ते देखमाँ का आँचल बिखर गयाचोरों ओर फैली दहशतहिंसा सब पर हावी हैभाई – 2 का हत्यारामिट रहा जग अपना प्याराथा जग अपना कभी हिमालय राजनीति का हुआ प्रहारअपने ही कृत्यों कापडोसी मुल्क हुआ शिकारअंत करीब है इस जग काकोई भी न बच पायेगासमय रहते माँ के आँचल को अगर न उठाएगा
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Beautiful poem . ,,,,,,,,,
Dhanyawaad ma’am …!
behad khoobsoorat………..
बहुत -2 आभार आपका।।।