(1.)दास्ताँ–गो की निशानी कोई रक्खी है कि वोदास्ताँ–गोई के दौरान कहाँ जाता है—शाहीन अब्बास
(2.)उन की उल्फ़त में ये मिला हम कोज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में—महावीर उत्तरांचली(3.)फेंकी न ‘मुनव्वर’ ने बुज़ुर्गों की निशानीदस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है—मुनव्वर राना(4.)उड़ते पत्तों पे लपकती है यूँ डाली डालीजैसे जाते हुए मौसम की निशानी माँगे—शाहिद कबीर(5.)ले जा दिल–ए–बेताब निशानी मिरी क़ासिदसीमाब से है मर्तबा–ए–इश्क़ ख़बर ला—वाजिद अली शाह अख़्तर(6.)कफ़–ए–पा हैं तिरे सहरा की निशानी ‘बेदार’मर गया तो भी फफूलों में रहे ख़ार कई—मीर मोहम्मदी बेदार(7.)बार–ए–दिगर समय से किसी का गुज़र नहींआइंदगाँ के हक़ में निशानी फ़रेब है—शाहिद ज़की(8.)रंग अब कोई ख़लाओं में न थाकोई पहचान निशानी में न थी—राजेन्द्र मनचंदा बानी(9.)ख़ुश्क पत्तों को चमन से ये समझ कर चुन लोहाथ शादाबी–ए–रफ़्ता की निशानी आई—मख़मूर सईदी(10.)तुम उसे पानी समझते हो तो समझो साहबये समुंदर की निशानी है मिरे कूज़े में—दिलावर अली आज़र(11.)चटानों पर करें कंदा निशानी अपने होने कीसुनहरे काग़ज़ों के गोश्वारे डूब जाएँगे—अली अकबर अब्बास(12.)दाग़ के हैकल अनझुवाँ की माला ज़ीनत–ए–इश्क़ की यही निशानीफिरें मस्त जो बिरह के तन कूँ मोती लाल पिरोना क्या—आबरू शाह मुबारक(13.)हवाएँ फूल ख़ुशबू धूप बारिशकिसी की हर निशानी मौसमों में—नसीर अहमद नासिर(14.)अक़्ल–मंदी की निशानी सींग हैंभैंस ने सर पर जड़े हैं दोस्तो—रियाज़ अहमद क़ादरी (15.)उस के गाँव की एक निशानी ये भी हैहर नलके का पानी मीठा होता है—ज़िया मज़कूर(16.)ज़िंदगी जल चुकी थी लकड़ी सीराख बस बच गई निशानी में—सचिन शालिनी(17.)याद आऊँगा जफ़ा–कारों कोबे–निशानी है निशानी मेरी—इम्दाद इमाम असर(18.)मेरी हस्ती है मुमय्यज़ ब–अदमबे–निशानी है निशानी मेरी—इस्माइल मेरठी(19.)यहाँ इक शहर था शहर–ए–निगाराँन छोड़ी वक़्त ने इस की निशानी—नासिर काज़मी(20.)तुम मिरे दिल से गए हो तो निगाहों से भी जाओफिर वहाँ ठहरा नहीं करते निशानी छोड़ कर—शहनवाज़ ज़ैदी(21.)वक़्त गुज़रता जाता और ये ज़ख़्म हरे रहते तोबड़ी हिफ़ाज़त से रक्खी है तेरी निशानी कहते—आनिस मुईन(22.)शब–ए–विसाल अदू की यही निशानी हैनिशाँ–ए–बोसा–ए–रुख़्सार देखते जाओ—दाग़ देहलवी(23.)जान की तरह से रखता है अज़ीज़ ऐ गुल–रूदाग़–ए–दिल लाला ने समझा है निशानी तेरी—हैदर अली आतिश(24.)रंग ने गुल से दम–ए–अर्ज़–ए–परेशानी–ए–बज़्मबर्ग–ए–गुल रेज़ा–ए–मीना की निशानी माँगे—मिर्ज़ा ग़ालिब(25.)हो कोई बहरूप उस का दिल धड़कता है ज़रूरमैं उसे पहचान लेता हूँ निशानी देख कर—शहज़ाद अहमद(26.)सूरत–ए–हाल पर हमारे मोहरदाग़ ने ज़ख़्म ने निशानी की—हैदर अली आतिश(27.)सारे संग–ए–मील भी मंज़िल हो सकते हैं भेद खुलाहाथों की रेखाओं में हर मंज़िल एक निशानी है—अम्बरीन सलाहुद्दीन (साभार, संदर्भ: ‘कविताकोश’; ‘रेख़्ता’; ‘स्वर्गविभा’; ‘प्रतिलिपि’; ‘साहित्यकुंज’ आदि हिंदी वेबसाइट्स।)
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