जीता है तुम को हार कर मैंने जहाँ में आज इतनी सी बस ये बात है कोई नहीं है राज़ संगीत की धुन प्रेम की बातें ही कहती है फनकार बिन खुद कभी बजते नहीं हैं साज़ रिश्ते निभाना ही महज़ उल्फ़त नहीं होती प्रेम का बंधन है ये मुझको है तुम पे नाज़पाने की चाहतें दफ़न करनी ही पड़ती हैं दिल के सौदों में कभी मिलते नहीं हैं ताज़ कोशिश करी जो भूलने की यार का चेहरा दिल मगर पागल कभी आता नहीं है बाज़ फितरत है जहाँ प्रेम की मजबूर हैं वो लोग तन्हाई में मधुकर कभी होते नहीं हैं काज़ शिशिर मधुकर
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बहुत बढ़िया लिखा है आपने ….पर काफिया सही नहीं आ रहा है….. आपने मतले के मिसरे में “ज” दूसरे में “ज़” लिया है…जो सही नहीं है… बाकी जगह जो “ज़” लिया है…वो दरअसल मेरी जो जानकारी है उस हिसाब से “ज” होगा….आप इसको चेक करिये…मेरा भी मार्गदर्शन करियेगा… जैसे…”ताज़” की जगह “ताज”…बाज़ की जगह बाज….काज़ की जगह काज…आएगा…
Tahe dil se shukriya Babbu ji. Aapke kathaanusaar aawashyak sudhaar kar diya hai.
मधुकरजी….आपकी ग़ज़ल में उर्दू हिंदी दोनों के लफ्ज़ हैं….राज़…साज़…नाज़….ये ‘ज़’ से ही आते हैं… आप देखिये ताज…काज…बाज ‘ज’ से आते ‘ज़’ से नहीं…जो मुझे पता…इस लिए राज़ को राज नहीं कर सकते…साज़ को साज…नाज़ को नाज नहीं…
Babbu ji maine net par check kiya aaj ke atirikt baaki sab jagah nuktaa theek hai. main isliye ise binaa radeef ki gazal shreni se nikaal keval ek kavitaa ke roop me ab prstut kar raha hun.
जी…मधुकरजी….आप सही कहते हैं…नेट पे बड़ी कन्फुसिंग जानकारी है…मुझे अभी भी शक है…ताज और काज में….निवातिया जी…लखनऊ से हैं शायद…उधर की ज़बान नार्मल रूप से वही बोलती है जो सही होता… उर्दू/फ़ारसी का जानकार भी ढूंढते हैं…मेरे पास एक किताब थी…ऐसी जानकारी की…वो कहीं गुम हो गयी….आप का बहुत बहुत आभार….
बहुत सुंदर 👍👍👍👍
Dhanyavaad Dr. Swati…………..
Ati suder.
Dhanyavaad Bhupendra……..
Ati sundar ,,,,,,,Shishir JI
Haardik aabhaar Kiran Ji ……..
मधुकरजी…नेट पे ही मैंने एक डिक्शनरी में चेक किया कितना सही नहीं पता….हाँ वहां देखिये जो लिखा : “आज़= प्रचण्ड इच्छा, लोभ, ल्प्सिा”, ताज= मुकुट…..
http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80