बचपन की व रंग बिरंगी यादे न जाने कहाँ ओझल हो गई। जब भी पीछे मुड़ कर देखी एक धुंधली याद साथ रह गई। कैसे बीता यह बचपन मेरा इसका एहसास तक ही न रहा। खिल उठा मेरा मन जब देखी कुछ पुराने दोस्तो को फेसबुक पर फिर याद आया हमे अपना बचपन ।जो जिया था हमने उसके सगंव नादानीया व शैतानीय स्कुल में आगे बेंच पर बैठने के लिए रोज दोस्तो से लड़ना झकड़ना रोज दिन गुड़ियो का विवाह रचाना।कभी रुठना कभी मनाना कभी खेल खेल में शिक्षक बन भाई बहन को पढ़ाना ।कभी भाईयों का डाक्टर बन कलम की nook से सुई देना। कभी चोर सिपाही राजा मंत्री का खेल खेलना। ये सब पीछे छुट गया। याद आया अपना बचपन जो उम्र के साथ पीछे छूट गया।
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Bahut badiya bhawna ji👍👍