ग़ैर-मुदर्रफ़ (ग़ज़ल बिना रदीफ़)कभी तुम कह नहीं पाये कभी मैं सुन नहीं पाया…ज़रा सी बात से देखो ज़हर रिश्तों में घुल आया….नहीं जो पास था मेरे रही चाहत उसी की बस…मिला मुझको नहीं वो और जो था पास गंवाया…करोगे बात दिल से तुम अगर तो राह निकलेगी…चमकती बिजलियों ने घोर बादल को भी दहलाया…जमाने भर की खुशियां भी उसे खुश कर नहीं पायी…जगी जब प्रीत दिल में तो, तभी सावन बरस आया….नहीं ले जाएगा कोई जहां से कुछ कभी ‘चन्दर’….जहां को जीत कर के भी सिकंदर ने ये समझाया….\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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वाह साकारात्मक भावो से सजी सुंदर कृति …………लाज़बाब ………..!!
तहदिल आभार आपका…Nivatiyaji….
Bahut sundar Sharma ji…
तहदिल आभार आपका…Anuji….
bahut sunder bhav ,bahut khub sharma sahab
तहदिल आभार आपका…Rajeevji….
bahut hi sundar rachna.
तहदिल आभार आपका…swatiji….
Behad khoobsoorat……..
तहदिल आभार आपका…Madhukarji…
बहुत ही सुन्दर रचना
तहदिल आभार आपका…Bhawanaji….