बुलाता है वो अपना पास पर ना आग बाकी है मधुरता खो गई गीतों में अब ना राग बाकी है तपते जेठ की गर्मी में वो सावन की उम्मीदें कहाँ झूलेंगी ये सखियां कोई ना बाग़ बाकी है घाव तो भर गया लेकिन उन्हें समझाऊं मैं कैसे सदा आँखों में चुभता है वो अब तक दाग बाकी है बसंती रिश्तों के रंग अब यहाँ मन को नहीं रंगते कहने को त्योहारों में अभी भी फाग बाकी है किसे अपना कहो मधुकर ये मतलब की दुनिया है रिश्तों में घटाना जोड़ना और बस भाग बाकी है शिशिर मधुकर
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सत्यता के धरातल को इंगित करती सुंदर कृति………. अति सुंदर शिशिर जी ……………….प्रथम पंक्ति में अपना की जगह शायद अपने होगा ……!
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji. Apnaa or apne dono theek hain lekin maine apnaa hi prayog kiyaa hai.
सही फरमाया मधुकर जी.. बहुत बढ़िया।
Bahut bahut aabhaar Bindu Ji …..
बहुत ठी कहा आपने शिशिर , जी ,घाव कैसा भी हो दाग
छोड़ जाता है
Dhanyavaad Kiran Ji ………….
umda……………….behad khoobsoorat………..
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ……….
बहुत ही खुबसूरत
Dhanyavaad Bhaavna Ji ………