क्या उपहार दूँ..तुम्हें मैं…क्या उपहार दूँ…वस्त्र दूँ गरीब तन को….या अमीर चाटुकार बनूँ…तुम बोलो क्या चाहिये…तुमको मैं….क्या उपहार दूँ….अट्टहास करते दानव की…भुजा उखाड़ दूँ…कोमल काया से या कोई…खिलवाड़ करूँ…बोलो न तुमको, मैं…क्या उपहार दूँ….कुत्तों से खाएं छीन जो…उन्हें भोजन ओ प्यार दूँ…या तेरे अहम को मैं…माला-हार दूँ…बोलो न तुमको, मैं…क्या उपहार दूँ….धूप में जलती भुनती काया…अपना पेट जो भर न पायी…उसको खाना दो बार दूँ…या तेरे पेट को मैं…और विस्तार दूँ…क्यूँ चुप्प हो तुम बोलो न…तुमको, मैं…क्या उपहार दूँ….ज़मीर अपना मार कर मैं…बेशर्मी…बेहया सत्कार करूँ…नहीं तुम्हें मैं देख देख…खुद को ही मार लूँ…क्यूँ मौन धरा तुमने अब…बोलो ज़रा..तुमको, मैं…क्या उपहार दूँ…..जिभ्या मौन..शिथिल अंग हैं…धरती पे तेरे नयन गढ़े हैं…इन्हें पुकार करूँ…या पत्त्थर हो मैं मौन धरूँ…बोल न तू…तुमको, मैं…क्या उपहार दूँ…..निश्चल …निर्मल प्रेम..आरूढ़ नहीं हो तुम…निर्लज्ज..निरंकुश…आरोही तेरा…क्या आह्वान करूँ…फूटो तो ओ शिला मस्तक …मैं तुम्हें….अब…क्या उपहार दूँ….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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बहुत सुन्दर भावाभयाक्ति शर्मा जी। बब्बू जी.. मेरे पोस्ट कलम का सिपाही में लिंग भेद मधुकर जी ने बताया…. मुझे पता नहीं चल रहा… थोडी मदद करें।
तहदिल आभार आपका…….Binduji….
Beautiful meaning of the poem humanity gives more pleasure than materialistic gifts . Bade Unche vichar hain .
तहदिल आभार आपका…..Kiranji….
मानवीय जीवन शैली पर गहरा कटाक्ष करती सुंदर अभिव्यक्ति …………ऐसे शब्द ह्रदय की गहराइयों से चिंतन के बाद उभरते है ………………उत्तम सृजन आपका …बधाई हो !
तहदिल आभार आपका…Nivatiyaji…