मैं ,मेरा मैं और मेरा सताये बहुतउम्मीदें भी जगाये बहुत कभी २ रुलाये बहुत मुक्ति कैसे पा सकते हैं कोई सोच ख़ुद से अलग नहीं इस से बड़ी कोई ललक नहीं प्यारी इससे कोई झलक नहींमैं मेरे से जब हम जुड़ जाते हैं न जाने क्या क्या हम सह जाते हैं अर्थ जीवन का भी इसी से है हर पकड़ भी जीवन की इसी से है शिकवे शिकायतें भी इसी से हैं अहंकार और गर्व भी इसी पे है बिन इसके कोई बोल नहीं अस्तित्व का भी तोल नहीं जीवन से बड़ा कोई मोल नहीं बदल जाए जो-मैं-तू ही तूं में फिर नहीं रहेगें हम कश्मकश में मैं मेरे से होकर मुक्त जा पहुँचेंगे हम प्रभु चरणन में परिभाषा सुख दुख की बदल जाएगी निराशाओं से मुक्ति मिल जाएगी आशाओं की बारिश भी थम जायेगी है अति सुन्दर पर इक जाल सलोना निकलना मुश्किल तो होना ही होना परहै रासता मुक्ति का बेमिसाल विश्वास प्रभु का करे कमाल छोड़ अहम को हो जाएँ मुक्त फिर कैसे रहे मन में कोई मलाल
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Behad sundar aatm anubhuti se yukt daarshnik rachnaa Kiran ji …….
Thanks for appreciation and very 2 good morning Shishir JI
behad khoobsoorat………….
ब्बबू जी बहुत २ धन्यावाद