न मैने ख्वाब देखा हैं न मैने दिल लगाया हैहक़ीक़त जान कर मैंने मुहब्बत को भगाया हैबड़ी बेकार है इसकी पकड़ तुम हात ना आनाबड़ी बेख़ौफ़ है इसने निगाहों को ठगाया हैकरो कोशिश रहें बचके न इसके साथ जा पाएबड़ी शिद्दत भरी आवाज में ये गीत गाया हैन जानें याद क्यों ऐसे रुलाएं जान ना पायाबिना बारिश नहाएं जो निगाहों ने भिगाया हैअचानक सामने गुजरा न जाने कौन साया थामगर जाते हुए दिल में मुहब्बत को जगाया है✍शशिकांत शांडिले, नागपुरभ्र.९९७५९९५४५०
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sahi farmaya….
हृदयी आभार आपका …………..
शशिकांत जी….हैं को है कीजिये रदीफ़….और काफिया सही नहीं आ रहा…अवलोकन करिये एक बार इसे आप…शब्दों का समन्वय ठीक नहीं लग रहा कई जगह मुझे….
जी हा, हैं के बारे में मैभी आशंकित था
रही बात शब्दों के समन्वय की तो ये गज़ल कुमार विश्वासजी की गज़ल कोई दीवाना कहता है इस चाल पर लिखने का प्रयास किया गया है
उसी हिसाब से शब्दों को जोड़ा गया है
कम ज्यादा हो सकता है
मैं इंकार नहीं करता
क्या यहां edit करना संभव है
अगर कोई मार्ग हो तो कृपया बताएं
शशिकांतजी…मैंने विश्वासजी की रचना नहीं पढ़ी है….हाँ एडिट कर सकते आप अपने मेनू में जाएँ…डैशबोर्ड यहाँ लिखा है…उसके नीचे पोस्ट्स…मीडिया…कमैंट्स जो आता है…उसमें पोस्ट्स को क्लिक करें…फिर आल पोस्ट्स को क्लिक करें…जिस रचना को एडिट करना करिये….फिर राइट साइड पे येलो अपडेट का बटन है….उसको क्लिक करेंगे तो अपडेट की हुई पोस्ट आएगी आपकी….
ji shukriya aapka
apne hisab se maine sudhaar kar liya hai
Shashikant I have redone your work as under :
न मैने ख्वाब देखा हैं न मैने दिल लगाया है
हक़ीक़त जान के मैंने तन्हा जीवन बिताया है
डगरिया प्रेम की बेकार है तुम इसपे न चलना
बड़ी बेरहमी से सबने यहाँ खुद को लुटाया है
करो कोशिश रहो बच के न इसपे घूमने जाओ
बड़ी शिद्दत भरी आवाज में ये गीत गाया है
न जानें याद क्यों ऐसे रुलाए जान ना पाया
बिना बारिश नहाए जो निगाहों ने भिगाया है
अचानक सामने गुजरा न जाने कौन साया था
मगर जाते हुए दिल में मुहब्बत को जगाया है
To me it looks marvellous now because what you wanted to say has probably come out well. In fact I didn’t like “bhagayaa” and “thagaayaa” in your original version.