मुहब्बत जिनसे है मुझको वो हरदम दूर रहते हैं तन्हा तड़पाते हैं मुझको खुद भी तो पीर सहते हैं एक दिन जान ले जाएगी ये दूरी जो बैरन हैं मानते हैं यही सच है मगर खुलकर ना कहते हैं मिलन की बात कहता हूँ तो बस मुस्कान भरते हैं समुन्दर में समाने को ही तो धारे ये बहते हैं मुहब्बत नींव में जिस महल की लगने नहीं पाई देख लो बुर्ज ऊँचे भी वहां तिनकों से ढहते हैं फकत रिश्ता बनाने से कोई अपना नहीं होता एक यही बात मधुकर सब यहाँ अपनों से कहते हैं शिशिर मधुकर
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बहुत ठीक कहा आपने शिशिर जी रिश्ते मानने से होते हैं न कि बनाने से
Thank you Kiran ji. Heard after a long time. Welcome back.
बहुत ही सुंदर👍👍
Tahe dil se shukriya Dr. Swati ……………..
Bahut hi sundar, Shishir ji…
Tahe dil se shukriya Anu ………………..
bahut sundar…………
Dhanyavaad Babbu ji ……………….
अत्यंत गंभीर और सुंदर पंक्तियाँ मन को छू कर गुजर गईं
Tahe dil se shukriya Krishna ……………….
बहुत खूबसूरत शिशिर जी ..प्रेम रचनाओं के आप माहिर है !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji………………..