उमड़ती -घुमड़ती -मचलती,ये मद मस्त सी घटाकारी – कारी कटारी, कजरारी, प्यारी सी लटा।कभी गरजती, कभी बरसती, कभी चमकती ऐसेसनन- सनन – सन पुरवाई, अंगड़ाई सी ये छटा।इतराती बलखाती रिमझिम, रिझाती ये बहुत हैमनमानी मस्तानी जियरा, उफानी भी बहुत है।कभी सताती, बेग से धाती, बन जाती उत्पातीतांडव करती, जनता मरती, पानी भी बहुत है।कभी बादल फट जाता तो, कभी कट जाती नदियाँखूब तबाही करती है, जब भर आती है नदियाँ।गाँव – गाँव, शहर -शहर में, होती है खूब तबाहीबिना मौत के मर जाते, जो हम सब में है कमियाँ।कभी आँधी तूफान रुलायी, कभी जलायी गर्मीहै किसान का कर्ज हमारा,मरते मजदूर कर्मी।बड़े – बड़ो की बात अलग है,ऐसे वैसे ठग हैंइंसान बेचारा क्या करे, जब लोग बने अधर्मी।
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sachachai aur dard ko ukerti ek khoobsurat rachna sharma sahab.
Bahut badiya 👍👍
ati sundar………..