सुख की तलाश में, दुख झेलता रहा मुसीबतों के पहाड़ से, खेलता रहा। जिसकी थी जरूरत, वह भागती रहीनसीब खराब था,जो उसे देखता रहा। बेरहम सी दुनिया, क्या जाने प्यार खुले बाजार में, जमीर बेचता रहा। जिस पर था भरोसा, बन गया काफिर शैतान हर मोड़ पर, राह छेकता रहा। भूल हो गई बिन्दु, तुझको समझने में तुम फंसते गये, वह जाल फेकता रहा।
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ati sundar……………..
बहुत बढ़िया बिंदु जी ………………………कुछ वर्तनी दोष है जिन्हे इंगित करता हूँ आपके लिए सहायक सिद्ध होंगे …अन्यथा न लेते हुए इन पर सुधार करे आप बहुत अच्छा लेखन कार्य कर रहे है आजकल
जैसे : –
“नसीब खराब थी” की जगह “नसीब खराब था” होना चाहिए
“खुली बाजार ” में की जगह “खुले बाज़ार” होना चाहिए
BARTANI INGIT KARNE KE LIYE DHANYABAD ….
”APP IS TARHA HI DEKHTE RAHIYE
KAUN KAHTA HAI ANDHIYAN NAHI AAYEGI. ” BAHUT BAHUT DHANYAD.
Bahut khub sharma sahab kya likha hai aapne , last panktiya bahut hi khubsoot kahi hai “तुम फंसते गये, वह जाल फेकता रहा।”