मुहब्बत जिसने की मुझसे उसे दीवानगी ना थीये तो किस्मत की बातें हैं मुझे हैरानगी ना थीरात भर पूजा करी जिसकी वो नज़दीक ना आयाउसे पाने की चाहत में असल मस्तानगी ना थीपास में कुछ जहाँ ना था वहाँ खुशियों की बातें थींझोपड़ी में इन महलों की तरह वीरानगी ना थीतुम ही कहो मंज़िल पे कैसे पहुँचूँ मैं इसके संगजिस टूटी हुई किश्ती की कोई रवानगी ना थीदेख कर रुख ज़माने का रुख जो मधुकर बदल लेता जहां कहता ये फिर तो कोई मर्दानगी ना थीशिशिर मधुकर
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बहुत उम्दा………………
Rachnaa padhne ke lie shukriya Babbu ji …..
bahut khub shishir sahab kya likha hai “पहुंचता तुम कहो मंज़िल पे कैसे बैठ कर इसमें
जिस टूटी हुई किश्ती की कोई रवानगी ना थी” bahut hi sunder pankti hai
Rachnaa saraahne ke lie shukriya Rajiv ji ……
lazawaz hai bahut sunder
Dhanyavaad Bindu Ji…..
लाजबाब …………..!!
Dhanyavaad Nivatiya Ji …….