कवि – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा (बिन्दु) वसंत की हरियाली होमाँ तुम इतनी निराली हो। तुम वतन चमन गुलबदन माँ तुम फूलों की डाली हो। तुम हर दिल की धड़कन हर एक सौगात की ताली हो। ममता, करुणा की सागर ममत्व, अमृत की प्याली हो। तू पोषक बेद ऋचा विभूति देवी दुर्गा, लक्ष्मी काली हो। दुख संताप छू मंतर होता माँ नजर जब तू डाली हो।
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Nice ……..
Lek8n mehfil thoda achcha nahin laga maa ke paroekshy me……
बहुत सुन्दर
sundar…………………
Bahut hi sundar👌👌