वक़्त बदले की निशानी देखना…सड़क पे पगड़ी उछलती देखना….कमतर लगेंगे ज़हर के तीर भी…बदज़ुबानी चीर करती देखना…शर्म,शील,लिहाज की बात न होगी…बाड़ खुद ही खेत खाती देखना….चार दिन की चाँदनी के वास्ते…..रक्त रंजित शादमानी देखना….गर न बदला हरकतों को तू ‘चँदर’…वक़्त पहले खत्म कहानी देखना….\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)…शादमानी – हर्षो उल्लास, ख़ुशी, उत्साह
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लाजवाब सर जी…. सही कहा आपने…..
तहदिल आभार आपका…….Madhuji….
Bahut sundar Sharma ji, …
तहदिल आभार आपका….Anuji….
वाह बेहतरीन ……….आपकी लेखनी का जबाब नहीं शब्दों का तालमेल अनूठा है !…………………..हाँ मतले की दूसरी पंकित में काफिया ग़ज़ल के अनुसार ही रखते तो और अच्छा लगता …….!!
तहदिल आभार आपके उद्गारों का……मैंने काफिया “ई” लिया है….हाँ बाकी ग़ज़ल में “आनी, आती ” आता तो थोड़ा अजीब लगता है…पर काफिया ग़लत नहीं होता….कोशिश करता हूँ कुछ और लफ्ज़ सोचने की जिस से ये और स्वाभाविक लगे….तब तक मैं दुसरे शेर के दुसरे मिसरे को जो “चीर करती बदज़ुबानी देखना” को ” बदज़ुबानी चीर करती देखना” कर देता हूँ उससे थोड़ा अजीब लगना कम होगा…इससे बह्र में फर्क नहीं पड़ेगा….जब तक और शब्द मिलता नहीं तो इस से गुज़ारा करते हैं…..हाहाहा ….
गजल में काफिया… आनी… बनता दिख रहा है… शायद निवतिया जी ठीक कह रहे हैं…. गजल के धून लय अच्छे हैं.. बहुत बढ़िया।
बिंदुजी…तहदिल आभार आपका…..बिंदुजी…काफिया “ई” है आनी नहीं…फिर से देखिये इसे…..
बहुत ही सुंदर रचना।।sir
तहदिल आभार आपका….Swatiji…
क्या बात है जनाब
सुंदर रचना
तहदिल आभार आपका….Shashikaant ji…
Saamaajik satya ko udghatit karti rachnaa Babbu Ji …..
तहदिल आभार आपका….Madhukarji….
बहुत ही सुन्दर रचना
तहदिल आभार आपका….Bhawanaji….