जो मैं याद आऊं तुम्हेतो एक बार पीछे मुड़ ही जानाकदमो के अनगिनत निशाँ मेंढूंड ही लेना मुझेजो मैं याद आऊं तुम्हेतो देख लेना मेरी तस्वीर कोजो तुमने खुद ही खींची थी अपने कैमरे सेमेरी तस्वीर छू कर महसूस कर लेना मुझेजो मैं याद आऊं तुम्हेतो घर की साफ़ सफाई करते करतेढूंड लेना मेरे लिखे पहले ख़त कोजो खून की स्याही से लिखा था मैंनेजो मैं याद आऊं तुम्हेतो खोल लेना कमरे की खिड़कियाँऔर बहने देना हवाओं कोउन हवाओं में ढूंड लेना मुझेजो मैं याद आऊं तुम्हेतो देख लेना अपने हाथ की लकीरों मेंकहीं मिट तो नहीं गया मैंतुम्हारी हथेलियों सेजो मैं याद आऊं तुम्हेतो तोड़ लेना बगीचे सेवो गुलाब का फ़ूलऔर चढ़ा देना मेरी कब्र पेदेखना मैं हूँ या नहीं —-अभिषेक राजहंस
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chhi peskash….. behtarin.
धन्यवाद महोदय
Sundar rachna…
रचना पर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद्
बहुत सुंदर बहुत….. खूब अभिषेक जी………
आपका दिल से आभार