एक दिन वो मिलीवही पुरानी गलीदिल पे ये हाथ थाबच्चा उसके साथ थाSmile उसने जो कियाआगे था मैं बढ़ गयाचक्कर में पड़ गयाकि Hi बोलूं, यां नमस्ते प्रियामैं भी जवाँ था कहाँफिर भी style से जराअपने बालों में मैंनेहाथ था घुमा दियाबोली हँसते हुएबेटा! मामू है येसाथ पढ़ते थे हम।बहुत झगड़ते थे हमकशमकश में पड़ गयाकि प्यार वो अब था कहाँ?चालाक बार वो बनीभोंदू फिर मैं बन गयाआँखें चुराते हुएथोड़ा हिचकचाते हुएबोली अच्छा चलूँकह इशारा था कियाउधर चिंटू के पापा नेभी wave था कर दियासुन्न खड़ा था वहांतितली फिर थी उड़ गईबात कुछ न हुईफिर भी गुदगुदी सी हुईसाइकिल stand से हटामैं भी घर को बढ़ाकुछ गुनगुनाते हुएकि बोलो क्या???याद आ गयावो गुजरा ज़मानावो गुफ्तगू धीमी-धीमीवो प्यार का नज़राना- मुक्ता शर्मा
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यादों का हर लम्हा….हसीं होता है…गुदगुदा होता है…और हम किसी और की बातों से उन लम्हों से आनंदित नहीं होते बल्कि खुद से होते हैं…..अपने से आनंद लेना ही चिरस्थायी आनंद है…ऐसा मुझे लगता है… बहुत खूबसूरत रचना………
Bahut bahut dhanyawad c.m Sharma ji
आप सब ज्ञानी जन की टिप्पणियों से जो कविता की प्रशंसा हुई है और आप को कविता खुबसूरत लगी इसके लिए 🙏
Nice
धन्यवाद् rakesh Kumar ji
वाह बहुत खूबसूरत ……..हास्य का सुंदर समामेश कर यादो को जीवंत करने का खूबसूरत रचनात्मक कार्य किया आपने … जो मन को गुद-गुदाने को मजबूर करता है ….यदि दोनों कि वार्ता में अंतराल को जगह देते तो खूबसूरती और निखर कर आती !!
धन्यवाद D.k.nivatiya jiहास्य-व्यंग्य लिखने की कोशिश की और आपके अनुसार सफल हुई हूँ और आपको रचना पसंद आई ,मन की अतल गहराइयों से धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर रचना
धन्यवाद bhavna kumari ji
Bahut badiya mukta ji
Dhanyawad Dr sahiba
Bahut sundar…
Dhanyawad anu ji
वाह बेहतरीन रचना……..
Bahut bahut dhanyawad madhu tiwari ji
Hansi ke saath saath javano ke dil par aagaat bhi karti hai ye “Mamu” vaali rachnaa Mukata. Ha HaHa………….
धन्यवाद मधुकर भाई जी अगर आपको रचना मे हंसी का पुट दिखाई दिया
कविता सफलहुई
So cute ,,,,,,like it