जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैंकितना कुछ बदल जाता हैसारी दुनिया एक बंद कमरे में सिमिट जाता हैसारी संसार कितना छोटा हो जाता हैमैं देख पता हूँ, धरती के सभी छोरदेख पाता हूँ , आसमान के पारछू पाता हूँ, चाँद तारों को मैंमहसूस करता हूँ बादलो की नमीनहीं बाकी कुछ अब जिसकी हो कमीजब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं ….पहाड़ो को अपने हाथों के नीचे पाता हूँखुद कभी नदियों को पी जाता हूँरोक देता हूँ कभी वक़्त को आँखों मेंकभी कितनी सदियों आगे निकल आता हूँजब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं ….कमरे की मेज पर ब्रह्माण्ड का ज्ञानफर्श पर बिखरे पड़े है अनगिनित मोतीख़ामोशी में बहती सरस्वती की गंगाधुप अँधेरे में बंद आँखों से भी देखता हूँहर ओर से आता हुआ एक दिव्य प्रकाशजब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं ….
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सिव्दूत जी बहुत ही सुन्दर लेख है आपने लिखा
Very nice
thanks
Sundar stuti …..
Aabhar sir
khoobsoorat……………..
shukriya..
BAHUT KHUBSOORAT
bahut bahut aabhar…
बहुत बढ़िया ………………!
bahut aabhar nivatiya g